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मय-कशी गर्दिश-ए-अय्याम से आगे न बढ़ी / हकीम 'नासिर'
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मय-कशी गर्दिश-ए-अय्याम से आगे न बढ़ी
मेरी मद-होशी मिरे जाम से आगे न बढ़ी
दिल की हसरत दिल-ए-नाम-काम से आगे न बढ़ी
ज़िंदगी मौत के पैग़ाम से आगे न बढ़ी
वो गए घर के चराग़ों को बुझा कर मेरे
फिर मुलाक़ात मिरी शाम से आगे न बढ़ी
रह गई घुट के तमन्ना यूँही दिल में ऐ दोस्त
गुफ़्तुगू अपनी तिरे नाम से आगे न बढ़ी
वो मुझे छोड़ के इक शाम गए थे ‘नासिर’
ज़िंदगी अपनी उसी शाम से आगे न बढ़ी