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मय की आगोश में मज़बूर दीवाने आए / सलीम रज़ा रीवा
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मय की आगोश में मज़बूर दीवाने आए
दर्दे दिल दर्दे जिगर हमको को सुनाने आए
उनकी आमद की ख़बर पहुची फ़लक़ पर जैसे
चाँद तारे ज़मी पर पलकें बिछाने आए
ख़ूने इन्सां से रगें हाथ है जिन लोगो के
अम्न का पाठ हमें वो भी पढ़ाने आए
उनके सीने में है कुछ अबभी वफ़ा की ख़ुश्बू
छुप के मैयत में मेरे फूल चढ़ाने आए
एक उम्मीद है धुल जाएँगे सब पाप यहाँ
यही अरमान लिए गंगा नहाने आए
उनके आने से अंधेरों का भरम टूट गया
बाद मुद्दत के सदाक़त के ज़माने आए
जिनकी यारी पे बड़ा नाज़ 'रज़ा' था मुझको
आज महफ़िल में वही ऊँगली उठाने आए