मरती बरिया प्राण पति के लाड़ आखरी कर ले / मेहर सिंह
तो सत्यवान क्या जवाब देता है
सावित्री मेरा जी घबरायै सिर गोड्यां में धर ले
मरती बरियां प्राण पति के लाड़ आखरी कर ले।टेक
न्यूं तै मैं भी जाण गया यो सिर पै गरजै काळ मेरै
धूंमा सा रहा उठ जिगर में पल्ले तै कर बाळ मेरै
यम के दूत दिखाई दै सै हुया मरण का ढाळ मेरै
दिखण तै बन्द होग्या फिरग्या आख्या आगै जाल मरै
मेरे ओड़ तै दिल की प्यारी घूंट सबर की भर ले।
न्यूं तै मैं भी जाण गया मेरी जिन्दगी का खौ सै
साची कह रह्या ना झूठ कती मेरा हुयआ तेरे मैं मोह सै
दुनियां भरी पड़ी सै छल की जणे जणे में धो सै
लागै तै कुछ जतन बता तेरा बळता दीवा हो सै
कहणी हो वे सारी कहले अपणी काढ़ कसर ले।
मेरै पक्की जंचगी सावित्री मेरे जीवण की आस नहीं
सिर मैं भड़क आंख में पाणी आता साबत सांस नहीं
इब बता के जतन करैगी कोए मनुष्य तलक तेरे पास नहीं
बियाबान तै कुटी तलक मेरी चलै तेरे तैं लाश नहीं
करके ढेठ चाल्यी जाईये कदे बण में रो रो मर ले।
एक कोरा सा घड़वा ले कै पीपळ के म्हां धरा दिये
पांच सात दिन उठ सवेरी गायत्री मंत्र फिरा दिये
कर कै संकल्प गऊमाता का मेरी क्रियाकाठी करा दिये
सोमारी मावस आजा तै पंडारै पिंड भरा दिये
कह मेहर सिंह हंसते हंसते धर्मराज का घर ले।