मरते-मरते किसने सदा दी
क़ातिल को जीने की दुआ दी।
मैं फिर क्या महफ़िल में सुनाता
मेरी कहानी तुमने सुना दी।
ख़्वाब भला आते भी तो कैसे
जाग के सारी रैन बिता दी।
दुश्मन ने दिल लूट के मेरा
आज मिरी औक़ात बता दी।
हंगामा बरपा जो किया था
बात वही फिर तुमने उठा दी।
छूकर अपने हाथ से तुमने
पानी में भी आग लगा दी।
अपनी धुन में आपने गाकर
मेरी ग़ज़ल की उम्र बढ़ा दी।