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मरते दम तक ऊँचा परचम होता है / रंजना वर्मा

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मरते दम तक ऊँचा परचम होता है
हर इंसां में कब इतना दम होता है

भिन्न दिशाओं से आकर नदियाँ मिलतीं
बेहतरीन तब उन का संगम होता है

दर्द कसकता है दिल से लोहू बहता
आँखों से बहता आँसू नम होता है

अरमानों की चमक नहीं फीकी पड़ती
रब से मिलता बहुत मगर कम होता है

जो कुर्बान वतन की खातिर हैं होते
लब पर राष्ट्रगान का सरगम होता है

नफरत के बो बीज उगाते हैं फसलें
इस से ही तो तघर घर मातम होता है

दे जाते हैं जख़्म बहुत टूटे सपने
बहता आँसू ही तब मरहम होता है