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मरसिया / शब्द प्रकाश / धरनीदास
Kavita Kosh से
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पानी ते पैदा कियो, ऐसा खसम खोदाय।
दहाभवो दस मास को, तर सिर ऊपर पाय॥
आँच लगी जब आगि की, आजिज होइ अकुलाय।
कोलकियो मुख आपने, ना कहु अंक लिखाय॥
कैसे करिहो वंदगी, जो पायउ मुकुराय।
जग आये जंगल परा, भरमि रहा अरुझाय॥
परकी पीर न जानिया, नाहक छुरी चलाय।
बाँधि जँजीरा जाइहो, बहुरो वही संजाय॥
सत गुरु को उपदेश ले, दोजख दर्द मिटाय।
मानुष देही दुर्लभा, धरनि कहत समुझाय॥1॥