मराठी औरतें / राग तेलंग
अभी भी
वैसी की वैसी ही तैयार होती हैं मराठी औरतें
जैसी हम अपनी माँ को देखा किए
अपनी बुआओं-मौसियों के साथ शादियों-उत्सवों के दरमियाँ
बातें करतीं हुईं लावणी की
मोगरे की वेणियाँ पहने बाकायदा नथ के साथ
जैसे सितारे उतरते हैं चमकते-चमकते
सपनीली रातों में पृथ्वी की नींदों के वक़्त
इन मराठी औरतों ने पहले पढ़ाई की
फिर औरों को पढ़ाया-लिखाया, सिलाई-बुनाई की साथ-साथ पशुओं की देखभाल भी
कइयों की जचकी करवाई भरी बारिशों में अन्धियारे समय में लालटेन की रोशनी में और
सलामत वापस लाईं उम्मीद से रहीं आईं औरतों को धरती पर
ऐसे कई क़िस्से थे जिन्हें बताते
टपकता था पसीना इन मराठी औरतों के माथे पर
इन मराठी औरतों के नाम कुछ भी हो सकते हैं आनन्दी बाई, मनोरमाबाई,
उमादेवी, मालती, निर्मला, सुमन, अरुन्धती या कुछ भी - कुच्छ भी
यह भी जो होंडा स्कूटर पर चली जा रही है
यह भी जो मारूति चला रही है
और वह भी जो आकाश में फ़ाइटर प्लेन पर है
और वह भी तो जो हुसैन की पेण्टिंग में गजगामिनी बने है
अब आज की कढ़ी इतनी स्वादिष्ट हो आई है
तो ज़रूर कुछ न कुछ बात है
और यह तथ्य भी क़ाबिले गौर है कि
अभी भी वैसी की वैसी ही तैयार होती हैं
ये मराठी औरतें ।