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मरा नहीं हूँ मैं / सूर्यपाल सिंह

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हो जाओ सावधान
रास्ता छोड़कर
पंक्तिबद्ध हो
हाथ जोड़ सिर झुका
अभिवादन करो
हमारे महाराज
और महारानी
निकले हैं
हवाखोरी के लिए!
यदि किसी ने
की गुस्ताखी
उसे सज़ा मिलेगी
जिसने भी सुना
बीसों नख जोड़कर
षीष झुका
हो गया खड़ा
पर एक साँड़
बुँबुआते
गाय के पीछे भागते
आ ही गया सामने।
महाराज ने देखा
भवें तनीं
हुक्म हुआ-
साँड़ को तत्काल
बधिया करो
यह इकबाल का
सवाल है।
साँड़ जाने कहाँ छिप गया
कारिन्दे हड़बड़ाए
दौड़कर पकड़ लाए
बधिया कर दिया
उस व्यक्ति को
जिसने कभी कहा था-
कोतवाल बदलो
भ्रश्ट तंत्र बदलो।
षाम को षतरंज खेलते
महाराज को याद पड़ा
पूछा, ' हो गया
हुक्म पालन? '
'जी हुजूर'
कोतवाल ने
कोरनिष की।
पर बधियाया व्यक्ति
जीवित है अब भी
लगाता है आवाज़
रोज़ चौराहे पर
' मरा नहीं हूँ मैें
मरूँगा भी नहीं
उठो जागो
भ्रश्ट तंत्र बदलो
कोषिष करो
बनाने की
नई व्यवस्था। '
कहते कहते
उसकी आँखें चमककर
अंगारा हो जाती हैं।