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मरिच पीसैते हे परभु, पिराय गेल हे बहियाँ / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

पत्नी ने शिकायत की- ‘मसाला पीसने के कारण मेरी बाँह में दर्द होने लगता है।’ पति ने रूखा-सा उत्तर दिया- ‘अगर ऐसी बात है तो अपने पिता के घर से एक दासी बुलवा लो।’ पत्नी ने रूखेपन से उत्तर दिया- ‘अगर मैं वहाँ चेरी के लिए खबर भेजूँ, तो एक की जगह हजारों चेरियाँ आ जायँ। लेकिन मैं ऐसा चाहती नहीं।’ फिर, बात बदलते हुए और पति पर चोट करते हुए पत्नी ने कहा- ‘आज ननद के घर में मयूर-पंख से मढ़ी हुई मेरी पंखी दिखाई पड़ी है। मुझे पता नहीं कि मेरी ननद ऐसी चोरनी है।’ पति को अपनी बहन पर लगाये हुए आरोप से क्रोध हुआ। उसने कहा- ‘जहाँ भी दस रुपये फेंक दूँगा, तुम्हारी तरह पत्नी पा जाऊँगा, लेकिन सहोदरा बहन कहाँ से पाऊँगा? ऐसी बातेॅ मत करो।’ पत्नी ने भी पति की बातों से मर्माहत होकर उत्तर दिया- ‘मैं भी जहाँ आँचल फैला दूँगी, वहीं तुम्हारी तरह पति पा जाऊँगी, लेकिन अपने सहोदर भाई को कहाँ से पाऊँगी?’
इस गीत में भाई-बहन के उत्कट प्रेम और पति-पत्नी का पारस्परिक प्रणय-कलह वर्णित है।

मरिच पीसैते हे परभु, पिराय<ref>दर्द करने लगा; पीड़ा होने लगा</ref> गेल हे बहियाँ।
जौं तोरा आगे धनि, पिराय गेलौ हे बहियाँ।
अपनी नैहरबा सेॅ, मँगाय लेहो हे चेरिया॥1॥
एक चेरिया माँगबै हे परभु, सहसर चेरिया हे ऐतेॅ
तोहें निरधनियाँ हे परभु, चेरिया किय खैतेॅ।2॥
अगिया लै<ref>लिए; लेने</ref> गेलियै हे परभु, ननद दाय<ref>बच्ची या छोटी ननद के लिए प्यार का संबोधन</ref> के हबेलिया।
ओतहिं<ref>वहीं</ref> चिन्हीं ऐलियै हे परभु, मयुरबा छारल<ref>छाया हुआ; मढ़ा हुआ</ref> हे बेनियाँ।
हमें नहिं जानली हे परभु, ननद दाय छै चोरनियाँ॥3॥
टका<ref>रुपया</ref> दस फेंकबै गे सोहबी, तोहर सन<ref>तुम्हारी तरह</ref> धनि पैबै।
माय बाप के जनमल गे सोहबी, सहोदर बहिनी कहाँ पैबै॥4॥
अँचरा बिछैबै हे परभु, तोहर सन परभु पैबै।
माय बाप के जनमल हे परभु, सहोदर भैया कहाँ पैबै॥5॥

शब्दार्थ
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