काल की रेती पर हमारे पैरों के छापे? हमीं तो हैं बिखरे बालू के कण जिन पर लिखता बढ़ जाता है काल अपने पैरों के छापे-सरल, गूढ़- अर्थ-भरे, नियति-गर्भ। फाल्गुन शुक्ला सप्तमी