भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मरुधर / कन्हैया लाल सेठिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भरत खंड रै देसड़ला में
मरूधर री छिब न्यारी।

डूंगर टणका कठै, कठेई
पसरी सोनल रेत ?
चावळ, चीणा, कणक कठेई
मोठ, बाजरी, खेत,
इण धरती नै नेठाई स्यूं
कुदरत बैठ संवारी।
बड़, रोहीड़ा, नीम, खेजड़ा
फोग, आकड़ा, जाळ,
बुई, भांकड़ी सिणिया, मासा
साटै रा भेदाळ।
घणी जड्यां संजीवण बूंटयां
उगै अठै उपगारी।
साथ मतीरा काकडियां रै
मीठा काचर, बोर
सांगर, कैर, खिंपोल्यां, खोखा
लड़ालूम सैंजोर,
खीच, ढोकळा, राब मुंडागै
लागै मिसरी खारी !
कुरज, कमेड़यां, मोर घुरसल्यां
सूवटियां रा टोळ,
रिण रोही में तीतर बोलै
इकलंग मधरा बोल,
हिरण लूंकडयां, सेही, सुसिया
जीव घणा वनचारी।
लूंठा ऊंठ, बळद नागौरी
बांका अबलख घोड़,
जबर दुधारू भैस्यां, गायां
कामधेणू री जोड़।

घर घर अठै चूंटिया चाटै
नानड़िया गिरधारी।
मै‘ल माळिया कोट, कंगूरा
मिनर, देवरा, थान,
कुआ, बावड़यां, झील, सरोवर
पाणी रा रैठाण,
साव निरोगा, देखण जोगा
रूपाळा नर-नारी !
आ बड़भागण भोम सुहागण
सगळां री सिरमोड़,
भोग भिस्ट बो सुरग करै के
त्याग भूमि री होड ?
इण री माटी हेटै सिळगै
जौहर री चिणगारी !