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मरु है कि पाटल कुंज / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'
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इस अमा में मुस्काना व्यर्थ है।
शोर गुल में गीत गाना व्यर्थ है।
बाढ़ पर है आजकल अपनी नदी
धार में जाकर नहाना व्यर्थ है।
गर्दर्भों के स्वर मुखर समवेत हैं
ऋचा वैदिक गुनगुनाना व्यर्थ है।
भीड़ आंदोलन प्रदर्शन हर तरफ
शान्ति के सपने सजाना व्यर्थ है।
व्यक्तिगत जीवन हुआ पाषाण सा
दीप आशा का जलाना व्यर्थ है।
दोस्तों ने कुछ कमी छोड़ी नहीं
दोष दुश्मन को लगा व्यर्थ है।
जिन्दगी मरू है कि पाटल कुंज है
आँकड़ा कोई लगाना व्यर्थ है।
गरजते भू पर हिलाते व्योग हैं
पंख शेरों के उगाना व्यर्थ हैं।