मरें भी अगर तो स्वदेशी कफ़न हो / स्वामी नारायणानंद ‘अख़्तर’
जिएं तो बदन पर स्वदेशी वसन हो!
मरें भी अगर तो स्वदेशी कफ़न हो!
पराया सहारा है अपमान होना,
जरूरी है निज शान का ध्यान होना,
है वाजिब स्वदेशी पे कुर्बान होना,
इसी से है संभव समुत्थान होना,
लगन में स्वदेशी के हर मुर्दो ज़न हो!
निछावर स्वदेशी पे, कर माल जर दो,
स्वदेशी से भारत का भंडार भर दो,
रहंे चित्र-से, वह चकाचौंध कर दो,
दिखा पूर्वजों के लहू का असर दो,
स्वदेशी ही सज-धज, स्वदेशी चलन हो!
चलो, इस तरफ़ अपना चरख़ा चला दो,
मनों सूत की ढेरियां तुम लगा दो,
बुनो इतने कपड़े, मिलों को छका दो,
जमा दो, स्वदेशी का सिक्का जमा दो,
स्वदेशी ही गुल, औ स्वदेशी चमन हो!
करो प्रण कि आज़ाद होकर रहेंगे,
जहां में कि बरबाद होकर रहेंगे,
सितमगर ही या शाद होकर रहेंगे,
कि हम शादो-आबाद होकर रहेंगे,
स्वदेशी ही ‘अख़्तर’ स्वदेशी कथन हो।