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मर्ज बढ़ाती रहीं निरन्तर / राजा अवस्थी
Kavita Kosh से
करते रहे अमल नुस्खों पर
लेकिन यह क्या?
मर्ज बढ़ाती रहीं निरन्तर
बंधु दवायें।
उतरे हुए नजर से
कैसे तुम्हें सुहायेंगे;
कैसे गीत बधाई के
घर आकर गायेंगे;
खाद और पानी ने यारी
करली कीटों से,
उम्मीदों का चैत
काट ले गईं हवायें।
पथ पर सुविधाओं के साधन
शूल विषैले बोये;
चकाचौंध में मेलजोल के
अर्थ निरन्तर खोये;
कटुताओं की फसल
पनप आई अँगनाई में,
हमसे आहत हुईं
मिलन की धवल प्रथायें।
औरों के घर का उजियारा
जिनको कभी न भाये;
दीपक बँटवाने के ठेके
उनने ही हथियाये;
साठ-गाँठ हो गई
कुम्हारों से उनकी पक्की,
अँधियारे के वृत्त
जनों के हिस्से आयें।