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मर्द और औरत / रोबेर्तो फ़ेर्नान्दिस रेतामार / अनिल जनविजय

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— ये कौन हो सकता है?
— कौन हो सकता है?
             तिरसो दे मोलिना<ref> एक स्पेनी नाटककार और धर्मशास्त्र के आचार्य (1579—1648)</ref> 

अगर एक मर्द और एक औरत उन रास्तों पर घूमते हैं
जो सिर्फ़ उन्हें ही दिखाई देते हैं
शहरों के किनारे-किनारे बने रास्तों पर
झुटपुटे में, सुहावनी हवा में, मौन के सागर में,
पुराने या आज के नए मंज़र में
उस माहौल में, जो संगीत की तरह बजता है
यदि पेड़ बढ़ रहे हों वहाँ, जहाँ चल रहे हैं वे
और अचानक एक पक्की दीवार चमकने लगे काँच की किसी खिड़की की तरह,
यदि दूसरों के चेहरे बार-बार पलटकर उन्हें घूरने लगें
जैसे किसी सुरीली बांसुरी ने उन्हें मोहित कर लिया हो
या भीड़ से घिरे किसी जादूगर के रंग-बिरंगे जादू ने ।

यदि उस मर्द और औरत को देखकर
एक बकवादी सैन्य-अधिकारी बोलना भूल जाए,
घरों के पास लगे झूले हिलना-डुलना बन्द कर दें,
और सड़क पर गिर जाए चाबियों का गुच्छा,
और लोगों की साँस फूलने लगे,
तो क्या इसका कारण यह नहीं है
कि प्रेम आज इतना दुर्लभ हो गया है कि उसे देखकर —
मन में मीठा-मीठा दर्द होने लगता है,
होश खोने लगते हैं हम, दम घुटने लगता है,
अपनी आँखों पर विश्वास नहीं होता ।

हम उदास हो जाते हैं,
जैसे सुनने लगे हों वो भाषा
जिसमें कभी हम ख़ुद बोला करते थे
और जो अभी भी हमारी जीभ की नोक पर टिकी है
फुसफुसाहट के रूप में
कानाफूसी के रूप में,
किसी कानाफूसी की सरसराहट के रूप में ... !
  
रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय

शब्दार्थ
<references/>