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मर्माहत / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
मुँह कड़वा है
घूँटें कैसे भरें ?
जीना लाचारी है
मन बेहद भारी है !
छद्म हँसी से
स्वागत कैसे करें ?
उजड़ा सूखा उपवन
नीरस नीरव जीवन
फूल कहाँ अब ?
पीले पत्ते झरें !