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मर्यादित हूँ सभ्य शिष्ट लेखन सर्जन से / अवधेश्वर प्रसाद सिंह
Kavita Kosh से
मर्यादित हूँ सभ्य शिष्ट लेखन सर्जन से।
खुद मेरी पहचान बनी है शब्द सुमन से।।
गायक वह जो मनमोहक स्वर में हैं गाते।
लहराते उंगली साजों पर मस्त मगन से।।
शायर जो शब्दों से खेले आँख मिचौली।
ग़ज़लों के शेरों में मधु भर लाय चमन से।।
हर प्रश्नों के उत्तर खोजें स्वर लहरी में।
पाते आशीषों में उत्तर तन-मन-धन से।।
गायक, शायर, दोस्त, कवि सब इक दूजे के।
हँसते-गाते चलते हैं यह संग पवन से।।
वादक भी जब साजों से स्वर लहरी छेड़े।
हँसते चाँद सितारे मिलजुल मुक्त गगन से।।