भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मर गए हैं बिना मरे / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


हम, जो मर गए हैं
बिना मरे-तुम्हारी बदौलत
वस्तुओं की तलाश में
कीमतों से लड़ते
खून खच्चर के बगैर
तुम शाप दो
कि हम न जिएँ
तुम्हें मरा देखने के लिए।

रचनाकाल: २०-११-१९६७