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मर जाती है बात / विजय वाते
Kavita Kosh से
या तो बहरे कान से टकरा के मर जाती है बात|
या हवाओ में कहीं लहरा के मर जाती है बात|
दिल से दिल का रास्ता सीधा भी है, आसां भी है,
अक्ल की दीवार से टकरा के मर जाती है बात|
बाद ज़ुबानी आज सब गुस्से में करतें है ज़रूर,
गालियों को होड़ से शर्मा के मर जाती है बात|
हर तरज ही शोर है, नारे हैं, जयजयकार हैं,
जानलेवा शोर से घबरा के मर जाती है बात|
बात लगाती है भली की सब जुबानें एक हों,
तर्ज़ुमों के फेर में चकरा के मर जाती है बात|