भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मलजी मोर बोले रै / लक्ष्मीनारायण रंगा
Kavita Kosh से
ऊजळी चारणी री
आतमा री कुळण
घुळगी
मोरां रै मन में क
पळपल
छिण-छिण
रटै
मेहा आओऽऽऽऽऽऽ
मेहा आओऽऽऽऽऽऽ