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मलान सावधान / महेन्द्र भटनागर

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मिटी नहीं अभी
मनुष्य की पशुत्व-वृत्ति,
ले रहा अशान्त श्वास
जंगली हृदय मलान
रंग-भेद के बुझे हुए चिराग़ पर !
गये नहीं अभी
समाज से विचार —
रक्त-पान के
अपार लूट के, खसोट के,
‘सुवर्ण’ की विनष्ट शान के
मनुष्य के मनुष्य पर प्रहार मौत के !

असभ्य दासता प्रथा बनी रहे,
‘सुवर्ण’ चाह
आज भी बना रही सवेग योजना,
गले पुकार कर रहे
अशक्त सृष्टि-स्वप्न घोषणा दहाड़ !
ले विनाश शस्त्र-बल शरण,
सहस्र राक्षसी चरण
विषाक्त साथ में घृणा पवन!

अनीति ढोल
बन्द कर श्रवण
प्रमादवश
बजा रहा, बजा रहा !
गुलाम विश्व के
मिटे हुए असार चिन्ह
फिर बना रहा !
ज़मीन पर न, आसमान में
क़िले बड़े-बड़े असीम
कर रहा सृजन !
उबल रहा मलान का
प्रखर सुधार श्वेत-रक्त,
गॉड का महान भक्त,
गौर-वर्ण-जाति का नवीन दूत

यह ग़लत कि वह मनुष्य बीच भूत !

अजेय शक्ति उठ रही,
नवीन ज़िन्दगी मचल रही,
विनाश का धुआँ
बिखर-बिखर अनन्त में समा रहा,
विरोध-मेघ व्योम घेर कर लहर रहे,
मनुष्यता उतर रही,
नये समाज का विधान हो रहा !
बड़ा कठिन लकीर पीटना
वही - पुराण जाति-भेद, रंग-भेद की !
मलान सावधान !