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मशविरे किसी के ना फलसफे / विकास जोशी

मशविरे किसी के ना फलसफे सिखाते हैं
आदमी को चलना तो तजुर्बे सिखाते हैं

वास्ता वफ़ा से जिनका नहीं है कोई भी
अब वही मुहब्बत के कायदे सिखाते हैं

मुल्क के सियासतदां भाई हैं ये मौसेरे
एक दूसरे को ये पैंतरे सिखाते हैं

खुद गंवा के अपना घर बार ये जो बैठे हैं
वो हमें तिजारत के फायदे सिखाते हैं

यूं जहां में कोई तालीम ही नहीं इसकी
सुर्खरू भी होना तो हौसले सिखाते हैं

ज़िन्दगी की राहों में ठोकरें ज़रूरी हैं
रास्तों पे चलना भी हादसे सिखाते हैं