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मसखरे का दुःख / कात्यायनी
Kavita Kosh से
अलक्षित रहा वह
अविचार भर हँसी के बीच
मोम की तरह
पिघलता और जमता हुआ
और लोगों को
सुख देता हुआ।
उसके पास एक घोड़ा तक नहीं था
दुःख बाँटने के लिए
और उसके परीधान चमकीले थे
मटमैली पुरानी कमीज़ के ऊपर
जिसके नीचे
उसका तरल हृदय था।
रचनाकाल : मई, 2001