मसलों से ग्रस्त है जब आदमी इस देश में,
किस बात की चर्चा करें आज के परिवेश में?
कल तक जो पोषक थे, आज शोषक बन गए
कौन करता है यकीं अब गाँधी के उपदेश में ?
माहौल को अशांत कर शांति का उपदेश दे,
घूमते हैं चोर-डाकू साधुओं के वेश में।
कोशिशें कर ऐसी जिससे शांति का उदघोष हो,
हर तरफ अमनों-अमाँ हो गांधी के इस देश में ।
है कोई वक्तव्य जो पैगाम दे सद्भावना का,
बस यही है हठ छिपा 'प्रभात' के संदेश में ।