मसायब से भरी ये ज़िंदगी आसान कर या रब / सिया सचदेव
मसायब से भरी ये ज़िंदगी आसान कर या रब
कभी ख़ुशियों को मेरी ज़ीस्त का उन्वान कर या रब
मैं तन्हा थक चुकी हूँ हर क़दम पर कोई उलझन है
मुझे तू रहमतों के साये में परवान कर या रब
तेरा ही ज़िक्र तेरा ही बयाँ विर्द ए ज़ुबाँ कर लूँ
हो तेरा नाम लब पर, तब मुझे बेजान कर या रब
बस इक मुख़लिस रिफ़ाक़त उम्र भर काफी रहे मुझको
सभी मौक़ा परस्तों से मुझे अन्जान कर या रब
मैं अपना हाल ए दिल और आरज़ू तुझसे ही कहती हूँ
सभी कुछ मान कर तुझको ,तुझी को जान कर या रब
चदरिया पर कोई धब्बा न मेरा मन ही मैला है
मैं ख़ुद को लेके आई हूँ फटक कर छान कर या रब
मेरी बेचैन बेक़स रूह ओ जाँ में वहशतें भर दे
मेरे ये दिल की आँखे और भी हैरान कर या रब
ये दो नैना तो बस सावन का मंज़र पेश करते हैं
सिया के मुस्कुराने का भी कुछ सामान कर या रब