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मस्जिदों-मन्दिर कलीसा सब में जाना चाहिए / नज़ीर बनारसी

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मस्जिदों-मन्दिर कलीसा <ref>गिरजाघर</ref> सब में जाना चाहिए
दर कहीं का हो मुकद्दर आजमाना चाहिए

मेरा मरना देखना हो मुझ से खिंच कर देख लो
मरने वाले को तो मरने का बहाना चाहिए

एक दुनिया कर रही है आजकल मश्के <ref>अभ्यास</ref> सितम
आपको भी जोरे-बाजू <ref>बाहुबल</ref> आजमाना चाहिए

मुझको रोन दो मुझे रोने में मिलता है मज़ा
मुस्कुराओ तुम कि तुम को मुस्कुराना चाहिए

होश आया जिन्दगी का बोझ उठा लेने के बाद
बार जितना उठ सके उतना उठाना चाहिए

बाग की कलियाँ हो, गुंचे हों कि दिल के जख्म हों
मुस्कुराएँ वो तो सबको मुस्कुराना चाहिए

खत्म पर मेरा सफर है डगमगाते हैं कदम
आगे बढ़कर उनको मेरा दिल बढ़ाना चाहिए

जिन्दगी भल चल के हम आये हे मंजिल के करीब
दो कदम अब चल के मंजिल को भी आना चाहिए

लायके-सजदा <ref>सर झुकाने योग्य</ref> नहीं हर आस्ताना <ref>चौखट</ref> ऐ ’नजीर’
सर झुकाने की जगह पर सर झुकाना चाहिए

शब्दार्थ
<references/>