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मस्ती के फाग / शशिकान्त गीते
Kavita Kosh से
डाल कर के
पेट में महुए की आग
खेलते हैं कोरकू मस्ती के फाग
भूल कर
भूख के हैं, सारे लफड़े
पहनकर सूद के ये मोटे कपड़े
निचुड़ी योजना के
छेड़े हैं राग
फागुन
के रंग रंगे सूखे पलाश
धरती पर पाँव धरे आँखों आकाश
अपनी चादरिया लें
औरौं के दाग़
भूत न
भविष्यत ही रखें आसपास
कल थे कल फिर से हों शायद उदास
बेफ़िकरे ना आगे ना
पीछे लाग