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मस्ती के रंग घोलै / मुकेश कुमार यादव
Kavita Kosh से
हौले-हौले वसंत मस्ती के रंग घोलै।
महुआ डाली पर कोयल कू-हू-कू-हू बोलै।
फूल-पराग सुंघी-सुंघी।
हर कली के चुमी-चुमी।
शाम-सवेरे घुमी-घुमी।
मधुवन बौराय भौरा आगू-पीछू डोलै।
मस्ती के रंग घोलै।
गल्ली बीच बहै पुरवैया।
मधुर गीत, मन कली गवैया।
बाजे लागलै शहनैया।
दुल्हन-अमराई जब घुंघट खोलै।
मस्ती के रंग घोलै।
मादक-गंध, मंद-मंद।
बौरैलो मन, स्वछंद, छंद।
गाय छै, मुक्त कंठ।
सौरभ-सुमन-रस-माखन-मिश्री-घोलै।
मस्ती के रंग घोलै।
सरसौ सर, सोहै चुनरया।
बाली उमरया।
लचकै कमरया।
पत्ता-पत्ता मस्त पवन संग हौले-हौले डोलै।
मस्ती के रंग घोलै।
अंग-अंग बूढ़ा वट।
लागलै सजाय में झटपट।
कोमल पत्ता खटपट
यौवन रस हँस-हँस जब बोलै।
मस्ती के रंग घोलै।