भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मस्ती में हमारी भी जो परवाह नहीं करते / बिन्दु जी
Kavita Kosh से
मस्ती में हमारी भी जो परवाह नहीं करते,
हम उनकी ख़ुशी के लिए क्या नहीं करते॥
उनको ये हासिल है कि हुकुमत करें हम पर,
हम उनकी गुलामी का भी दावा नहीं करते॥
हम उनको मनाते हैं जो हर बात में हमसे,
लड़कर भी कहते हैं कि बेजा नहीं करते॥
दुनिया के जो पर्दे में भी बेपर्दे हैं उनके।
हम पर्दा नशीं होकर भी पर्दा नहीं करते॥
दृग ‘बिन्दु’ की जो जंजीर पिन्हाते हैं हमको।
हम उनकी नज़र क़ैद से निकला नहीं करते॥