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मस्त कर के निगाह ए होशरुबा ने मुझको /सीमाब अकबराबादी
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मस्त कर के निगाह ए होशरुबा ने मुझको
बज़्म ए साक़ी में लगाया है ठिकाने मुझको
लुत्फ़ परवरदा ए फ़ितरत है सहरगश्त मिरा
कि नसीम ए सहर आती है जगाने मुझको
हाथ रुकने न दिया मशक़ ए जफ़ा ने उनका
चैन लेने न दिया शौक़ ए वफ़ा ने मुझको
एक छोटा सा नशेमन तो बना लेता मैं
चार तिनके न दिए मेरे ख़ुदा ने मुझको
नग़मासंजी मिरी सीमाब बहुत दिलकश है
याद हैं तूती ए सदरह के तराने मुझको