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महकती फ़ज़ा का गुमाँ बन गया मैं / डी.एम.मिश्र
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महकती फ़ज़ा का गुमाँ बन गया मैं।
कभी गुल था अब गुलिस्ताँ बन गया मैं।
बहुत बार टूटा मगर मैं न हारा,
बिखर कर उड़ा कहकशाँ बन गया मैं।
उसी ने रुलाया , उसी ने सताया,
उसी का मगर मेहरबाँ बन गया मैं।
तेरे प्यार ने मेरी दुनिया बदल दी,
मोहब्बत की इक दास्ताँ बन गया मैं।
मेरी मुफ़लिसी ही मेरा इम्तहाँ है,
मिली जब न छत आसमाँ बन गया मैं।
ग़ज़ल मेरी ताक़त, ग़ज़ल ही जुनूँ है,
जो गूँगे थे उनकी जुबाँ बन गया मैं।