भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
महकती फ़जा का गुमाँ बन गया मैं / डी .एम. मिश्र
Kavita Kosh से
महकती फ़जा का गुमाँ बन गया मैं
कभी गुल था अब गुलसितां बन गया मैं
बहुत बार टूटा मगर मैं न हारा
बिखर कर उड़ा कहकशाँ बन गया मैं
उसी ने रुलाया , उसी ने सताया
उसी का मगर मेहरबाँ बन गया मैं
तेरे प्यार ने मेरी दुनिया बदल दी
मोहब्बत की इक दास्ताँ बन गया मैं
मेरी मुफ़लिसी ही मेरा इम्तहाँ है
मिली जब न छत आसमाँ बन गया मैं
ग़ज़ल मेरी ताक़त, ग़ज़ल ही जुनूँ है
जो गूँगे थे उनकी जुबाँ बन गया मैं