भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
महका-सा हूँ / चंद ताज़ा गुलाब तेरे नाम / शेरजंग गर्ग
Kavita Kosh से
कुछ गुलाबी यादगारों की महक-वसा हूँ ऐश या आराम की बस्ती नहीं हूँ मैं आपका दिल हो अगर तो शौक से रह लें प्यार हूँ, कोई ज़बरदस्ती नहीं हूँ मैं। </poem>