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महकी हुईं फ़िज़ाएँ दे, कुछ आसमान दे / के. पी. अनमोल

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महकी हुईं फ़िज़ाएँ दे, कुछ आसमान दे
गर हो सके तो हमको नया इक जहान दे

दे जिसमें कोई ख़ौफ़ न हो, रंजिशें न हों
मौला तू मेरे मुल्क को अम्नो-अमान दे

आँखों को हौसला दे कि वो देखें कोई ख़्वाब
ख़्वाबों के हौसलों को मुसलसल उड़ान दे

सच को सही कहें व ग़लत को कहें ग़लत
बेख़ौफ़ ख़यालात दे, सच्ची ज़ुबान दे

हाथों को काम, पेट को हों रोटियाँ नसीब
मेहनत की ख़ुशबुओं से मुअत्तर थकान दे

दिल वन्दे मातरम की सदाओं से हो भरा
जय हिन्द का ज़ुबान को अनमोल गान दे

जिसमें सुकून से रहे हर क़ौम, हर बशर
हमको हमारा फिर वही हिन्दोस्तान दे