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महकेगा चंदन-वन / योगेन्द्र दत्त शर्मा

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मधुरिम गीतों के सर्जक-किशन सरोज, बंधु!
करता प्रणाम योगेन्द्र दत्त
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‘चंदन वन डूब गया’ पढ़कर लिख रहा पत्र
है जन्म-दिवस भी आज, बधाई मेरी लें!

है धन्य लेखनी, सुफल सृजन
मैं हूं कृतज्ञ
मन मुग्ध हिरन-सा है कस्तूरी गीतों में
हिल रहा ताल-सा
रजनीगंधा-छुअनों से,
जोगी-सा भरमाता एकांत अतीतों में!

आपके अनेकों में से एक प्रशंसक हूं
गीतों को पढ़कर, बंधु!
हो गया गद्गद मन,
भावुक मन
प्रांजल भाषा वाले गीतकार!
यों लगा कि
फिर कुहरे से उभरा चंदन-वन!

कुहरा ही है
जो काव्य-जगत पर मंडराया
पाकर गीतों की धूप
बिखरता जाता है
दशकों से
मटमैला-सा था
कविता-कानन,
यों लगा कि
उसका रूप
निखरता जाता है!

कुछ गीतकार हैं
जो सर्वस्व समर्पित कर
कविता की झोली
रहे आज
गीतों से भर
देवेन्द्र ‘इन्द्र’, भारत भूषण
माहेश्वर जी
खुद आप
प्रेम शर्मा, नईम
बेचैन कुंअर!
ऐसे समर्थ हों गीतकार
तो निश्चय ही
कुहरा छंट जायेगा
फिर होगा मुक्त गगन
भावों, रागों की अगरु-गंध लहरायेगी,
महकेगा, महकेगा गीतों का चंदन-वन!
(किशन सरोज को लिखा पत्र-गीत)
-19 जनवरी, 1986