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महक आती है यूँ उर्दू ज़बां से / अजय अज्ञात
Kavita Kosh से
महक आती है यूँ उर्दू ज़बां से
कि ख़ुशबू आये जैसे गुल्सितां से
भरोसा है जिसे ख़ुद पर कभी वो
नहीं डरता किसी भी इम्तिहां से
रखो गुस्से ़ पे क़ाबू अपने हरदम
कभी कड़वा न बोलो इस ुबां से
यक़ीनन आँखों का धोका है यारो
ज़्ामीं मिलती नहीं है आसमां से
कहाँ जाते हैं जग से जाने वाले
‘अजय’ पूछो गुबारे ़ कुश्तगां से