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महक नहीं आती काँटों से / निर्मल शुक्ल
Kavita Kosh से
पटा रहा दिन सन्नाटों से
ऐसे में अनुवाद करें क्या
महक नहीं आती काँटों से
इस पर वाद-विवाद करें क्या
बोनों की हिक़मत तो देखो
चूम रहे
मेघों के गाल
काग़ज़ की
शहतीरें थामें
बजा रहे सब के सब थाल
परछाईं हारी नाटों से
ऐसे में संवाद करें क्या
चट्टानों पर धूप चढ़ी तो
शिखर हुए
हिम से कंगाल
गर्म हवाओं के
दंगल ने
नष्ट किया कुल साज-सँभाल
पाला है बन्दर-बाँटों से
ऐसे में प्रतिवाद करें क्या