भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

महक रहा हो मौसम जैसे / छाया त्रिपाठी ओझा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्रीति हृदय पर कुछ यूँ छाई
महक रहा हो मौसम जैसे

शब्द ठहर जाते अधरों पर
बैठ हृदय में भाव चहकते
खुलतीं बंद सहमती पलकें
देख रहीं बस कदम बहकते
ठहरी-ठहरी मधुर चाँदनी
देख मगर कुछ यूँ मुस्काई
बहक रहा हो मौसम जैसे
प्रीति हृदय पर कुछ यूँ छाई
महक रहा हो मौसम जैसे

आँख मिचौली सँग तारों के
खेल रहे हैं जुगनू सारे
पीकर मदिरा मगन हुए हैं
जैसे ये मदहोश नजारे
इधर उधर कुछ भटके बादल
हँसकर बदन छुए पुरवाई
चहक रहा हो मौसम जैसे
प्रीति हृदय पर कुछ यूँ छाई
महक रहा हो मौसम जैसे

खुशियाँ बैठी हैं सिरहाने
लहराती भावों की सरिता
छिपकर बैठी बना रही है
लाज निगोड़ी अनुपम कविता
करवट-करवट ढीठ कामना
मचल रही है बस हरजाई
दहक रहा हो मौसम जैसे
प्रीति हृदय पर कुछ यूँ छाई
महक रहा हो मौसम जैसे