महत्त्वपूर्ण / महेन्द्र भटनागर
कोई रूप-स्वरूप तो लें,
आख़िर कोई तो रूप लें !
हम पहुँचे तो सही
(ग़लत या सही)
किसी नतीज़े पर,
किसी घर.....दर
किसी ठिकाने भर !
यों वियाबान में
कब-तक भटकेंगे ?
यों आग की भट्ठी में
कब-तक
तरल-तरल तड़पेंगे ?
चीजें —
कोई शक़्ल तो लें !
आखि़र कोई तो शक़्ल लें !
मंसूबों की रेखाएँ —
स्पष्ट या धुँधला
कोई आकार-चिन्ह लें तो
आख़िर, कोई आकार-चिन्ह तो लें !
कि हम जान सकें
दिशाएँ
दूरियाँ
विस्तार !
विचार —
अमूर्त विचार साकार तो हों,
चिन्तन-लोक की गहराइयों में
किसी तरह तो हों साकार
अमूर्त विचार,
कि हम बना सकें दिमाग़
और पहना सकें
उन्हें
कोई भाषा-प्रारूप।
कहीं से
कोई तो रोशनी की किरन फूटे
अन्धकार तो छँटे
और हम अन्ध-कूप से
आएँ बाहर,
कम-से-कम बाहर तो आएँ,
चीजें —
रंग-रूप तो लें
हवा-धूप तो लें !
चीजें —
कोई रूप-स्वरूप तो लें !