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महत्वाकांक्षा / गोरख प्रसाद मस्ताना

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रसायनों से पके फलों की तरह
मौसम से पहले बचपन
जिसे अक्षरों का आवरण नहीं
अर्थ का लिबास दिया गया या
उसके सपनों का अपहरण किया गया
तुतली बोली की मिठास में
घुला काऊ डागी का संज्ञान
क्या यही है नई नीतियों का अनुसन्धान
अब तो लगते हैं गाय कुत्ते
जैसे शब्द गँवारू
'क' के मुँह में 'ए' 'ख' के मुँह में 'बी'
घुसेड़े जा रहे मानो संसद की दीवारों
पर किसी आतंकवादी की गोली
कौन बचेगा?
अनुतरित आज भी
संभावना और यथार्थ के बीच
की दुरी का बोध या
हैसियत के मार्ग का अवरोध
ऐसा अन्तर्रद्वन्द तो नहीं या
पहले कभी
ठीक से बड़े हो जल्दी बड़े हो
यही तो स्टेटस और दौलत की
प्राप्ति का साधन है
भले ही यह उडान (वर्ड चेक)
चुनचुन चिड़ियों का पंख
कर दे लहूलुहान
लेकिन स्वार्थ की कटोरी से पिलाए गये
दूध से पल बचपन
क्या जाने गर्भ में पल रहे
अंत भी स्वप्न को
कोमल मन लेकिन तन शीघ्र हो पुष्ट
भले ही टूट जाये किलकारियों भी पेन्सिल
फट जाए भविष्य का पन्ना।