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महफ़िल ग़मों की जब भी सजाती है ज़िन्दगी / ईश्वरदत्त अंजुम

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महफ़िल ग़मों की जब भी सजाती है ज़िन्दगी
माज़ी को मेरे साथ बिठाती है ज़िन्दगी

आंसू पिला के ग़म के ये होती है खदाज़न
उजड़े दिलों में दर्द जगाती है ज़िन्दगी

मौसम बदल गये मिरी दुनिया बदल गयी
कितने अजीब रंग दिखाती है ज़िन्दगी

कैसी भी हो फ़ज़ा मगर रुकती नहीं बहार
सिहने-चमन में फूल खिलाती है ज़िन्दगी

अंजुम ख़ुदा के फ़ैज़ से मायूस तो न हो
जामे कई बदल के फिर आती है ज़िन्दगी