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महफ़िल में हैं तेरी यादें तन्हाई में तेरी सोचें / अनु जसरोटिया
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महफ़िल में हैं तेरी यादें तन्हाई में तेरी सोचें
आ जा हम को रहने लगी हैं हर दिन हर पल गहरी सोचें
शाम ढले बेटी का घर से बाहर जाना ठीक नहीं है
बाप की बूढ़ी आंखों में हैं जाने कैसी कैसी सोचें
ये तुलसी का विरवा इक दिन और किसी आंगन में होगा
जूँ जूँ बेटी का क़द बढ़ता बढ़ती जातीं माँ की सोचें
आँगन आँगन, कुटिया कुटिया, पहुँची महल चौबारों में
बँद दरीचों में भी जाने कैसे आती जाती सोचें
बाँट दिए हैं अम्मा-बाबा अब इस घर के बटवारे ने
बदली दुनिया बदले तेवर बच्चों की भी बदली सोचें