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महाकवि तुलसीदास (रूबाइयाँ) / नज़ीर बनारसी

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शुभ दिन लिए सावन का महीना आया
तब जा के मेरे हाथ नगीना आया
आया मुझा तुलसी पे जो लिखने का ख़याल
कुछ देर ख़यालों को पसीना आया

विश्वास को श्रद्धा को बढ़ाया तुमने
निर्वाण को आसान बनाया तुमने
भक्ति की कस़म झुका-झुका कर मस्तक
भगवान को भगवान बनाया तुमने

तुसली की तरह गमक-गमक कर तुमने
भक्ति का वो मैदान किया सर तुमने
जिस ’राम’ को बनवास दिया दशरथ ने
उस राम को पहुँचा दिया घर-घर तुमने

जो दिल में था काग़ज पे उतारा तुमने
मिटता हुआ हर नक़्श <ref>चिह्न</ref> उभारा तुमने
संसार को राम ने सँवारा लेकिन
संसार के राम को सँवारा तुमने

दम तोड़ रहा था रिश्ता-नाता
संतान से छुट रही थी भारतमाता
देती है बधाई संस्कृति तुमको
ऐ भारतीय तहज़ीब के जीवन दाता

धरती के मुक़द्दर के सँवारे तुलसी
तारों के भी आँखों के हैं तारे तुलसी
क्यों साथ न तुलसी के रहे गंगा जल
पार उतरे हैं गंगा के किनारे तुलसी

दिल का तो दरादा है वहाँ तक पहुँचूँ
अब अपनी पहुँच पर है जहाँ पहुँचूँ
तुलसी पे तो मैं लिख के यहाँ तक पहुँचा
श्री राम पे लिखूँ तो कहाँ तक पहुँचूँ

’तीज’ को आए ’सप्तमी’ को गये
आने-जाने में एक राज़ भी है
सारी दुनिया को ये बताना था
ज़िन्दगी सिर्फ़ चार दिन की है

शब्दार्थ
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