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महाकवि रवीन्द्रनाथ के प्रति / केदारनाथ अग्रवाल

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कवि! वह कविता जिसे छोड़ कर

चले गए तुम, अब वह सरिता

काट रही है प्रान्त-प्रान्त की

दुर्दम कुण्ठा--जड़ मति-कारा

मुक्त देश के नवोन्मेष के

जनमानस की होकर धारा ।

काल जहाँ तक प्रवहमान है
और जहाँ तक दिक-प्रमान है
गए जहाँ तक वाल्मीकि हैं
गए जहाँ तक कालिदास हैं
वहाँ-- दूर तक प्रवहमान है
आँसू-आह-गीत की धारा
तुमने जिसको दिया आयुदान
और जिसका रूप सँवारा ।
आज तुम्हारा जन्म-दिवस है
कवि, यह भारत चिरकृतज्ञ है ।