भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
महाकाव्य के बिना / कुमार कृष्ण
Kavita Kosh से
हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।
शीर्षक मित्र कवि लीलाधर जगूड़ी से यह शब्द इस कविता के लिए उधार लिया गया है
लाखों-करोड़ों वार सहकर भी
भरती रही वह हर बार
कलम की भूखी चोंच का मुँह
छोटे से दवात में छुपी
कपड़े की नन्ही लीर
हम पढ़ते रहे महाभारत
रटते रहे रामायण
करते रहे याद रामचरितमानस की चौपाइयाँ
एक बार भी नहीं सोचा हमने
लीर और कलम के रिश्ते के बारे में
कितनी पीड़ा सहकर पहुँची होगी
कलम की चोंच में छुप कर
काग़ज़ के पृष्ठों तक लीर की तकलीफ़
भूल चुके हैं हम-
लीर और कलम के दर्द में शामिल होकर ही
लिखा जा सकता है कोई महाकाव्य
छोटी चिन्ताएँ खिल सकती हैं बस
छोटी कविताएँ बन कर
मेरे मित्र! सही कहा था तुमने
गुज़र जाएगी यह सदी महाकाव्य के बिना।