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महाकाव्य / वंदना केंगरानी
Kavita Kosh से
मैं महाकाव्य लिख रही हूँ
सैंडिल पर पालिश करते हुए
नहाते हुए
बस पकड़ते हुए
बॉस की डाँट खाते हुए
रोज़ शाम दिन—भर की थकान
मिटाने का बेवजह उपक्रम करते
चाय पीते
तुम्हें याद करते हुए
महाकाव्य लिख रही हूँ !