महागुरुओं की सीख / हरीश प्रधान
गाँधी जयंती की तैयारी में
मिले मुझे पंडित शुक्लाजी
बोले दोस्त! तुम्हारे ख़ातिर
नया एक उपहार लिया है।
मैंने उत्सुकता से माँगा जब
उपहार नया तो बोले,
दो, रुपये कुछ, जमा किराया
ताँगे का भी नहीं दिया है।
रुपये ले, ताँगे से उतरे
क्रान्तिजयी खाली केफे में
पास बिठाकर इतमिनान से
लगे मुझे फिर यों समझाने
तुमने प्रोफेसर बनकर भी
ख्याति न अर्जित की अभी तक
तुम पर कसते हैं कुछ ताने
घर बाहर के यार सयाने।
तुम्हें सफलता दिलवाने को,
ले आया हूँ, गुरु तीन मै,
जिनकी सीख मानकर गाँधी,
सम्पूर्ण राष्ट्र के पिता हो गये।
सीख मानली तुमने भी तो,
राष्ट्रपिता यदि नहीं कमसकम
लोकप्रिय प्राध्यापक होकर,
कुलपति अवश्य तुम हो जाओगे।
फिर तीन बन्दरों वाली मूरत खोल
शीघ्र टेबिल पर धर कर
बोले:-प्रधानजी! तुम भी सुन लो
गाँधी के गुरुओं की शिक्षा,
भला चाहते हो तो अपना
बदलो सब व्यवहार पुराना,
आदर्श गुरु बनना हो तो फिर
ग्रहण करो इनसे ही दीक्षा।
दोनों हाथों से आँख मींचकर
कहते पहले ये महागुरुजी
सुना... गुरुजी 'बुरा न देखो'
महापाप है बुरा देखना
यदि कॉलेज की केन्टीन में
छात्र उड़ाते धुआं, सिगार के
कश पर कश, खींचे जाते हों
सिनेघरों का दृस्य समझ कर
जर्देवाला पान चबाते
कक्षाओं में आ जाते हों
और ... जुगाली करते ... करते
भाषण के ही मध्य ऊँघते
और बगासी भरते
तुम्हें नजर आते हों...
याकि, तुम्हें और तुम्हारे
श्याम पट की रेखाओं पर,
नज़र न रखकर,
अपनी नव सहपाठिन को ही,
लगातार घूरे जाते हों
तो तुम्हें आँख इन पर रखने की
नहीं ज़रूरत, सुना गुरुजी
महापाप है बुरा देखना, 'बुरा न देखो'
शिष्याएँ यदि कहीं तुम्हारी
चुस्त-चुस्त पोषाक पहिनकर
पुस्तक के झोले के बदले
वेनिटी बैग लेकर आती हों
याकि बिना बाहों वाले कुरते व जीन्स में
कोई विज्ञापन के जैसी अंग-अंग का किये प्रदर्शन
यहाँ वहाँ कुछ इतराती हों।
और ... तुम्हारे बाद तुम्हारी ही कक्षा में,
फेशन परेड का दृश्य बनातीं
मुस्काती इत उत निहारतीं
लोलित अंपाग के शर बरसातीं
तुमसे पूछे बिना, एक के बाद एक-एक आती हों,
तो तुम्हें आँख इन पर रखने की
नहीं ज़रूरत, सुना गुरुजी...
बुरा न देखो, बुरा देखना महापाप है
चाहे साल गुजारे ऐसे, नहीं उपस्थित रहे कक्ष में
चाहे पढ़े नहीं दो आखर, पास मगर उनको होना है
चाहे कैसे भी आये यदि, सरल-सरल से प्रश्न पत्र और
उत्तर भले नहीं आये पर, साल नहीं इनको खोना है
ध्यान रहे इनकी कठिनाई, इन्हें डिग्रियाँ लेना केवल
नहीं ज्ञान की इन्हें ज़रूरत, नेता बनना है इनको
कुछ नहीं कहीं नोकर होना है।
इनविजि़लेशन अगर करो तो
आँखें नहीं खुली रखना है
नकल करें यदि खुले आम भी
और नकल के लिये, अधिक सुविधा दो
ये आन्दोलन छेड़ें, खुद के पैसों में आग लगायें,
खिड़की दरवाजे भी तोड़ें
तो तुम्हें आँख इन पर धरने की नहीं ज़रूरत,
गाँधीजी के गुरु कह रहे
'बुरा न देखो' बुरा देखना, महापाप है
दोनों हाथों से कान दबाये बता
रहे दूसरे गुरुजी,
बुरा न सुनना
' प्रगति पंथ की एक बड़ी बाधा,
कानों को खुले छोड़ना। '
संविधान से अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता
जो चाहे सो बोल सकेंगे
और बोलना या चिल्लाना
या चिल्लाकर शोर मचाना,
जन्मसिद्ध अधिकार सभी का।
यदि तुम्हारे शिष्य, कभी क्या,
सदा मौज में घूम-घूम कर ...
ताज़ा किसी फ़िल्म कीधुन पर...
ग्रंथालय या कक्षाओं में,
शोर करें या सीटी मारें
या कुछ पशुओं की बोली में-
प्रकट करें अपनी प्रतिभा को,
नवागमन पर बालाओं के
आह! भरें या कुछ सिसकारें...
और राह चलते तुम पर
या कभी तुम्हारी शिष्या पर भी
कैसी ही फब्तियाँ कसें तो,
कान नहीं उस पर देना है,
' बुरा न सुनना सीख समझ लो
प्रगति पंथ कीएक बधी बाधा
कानों को खुला छोड़ना। '
और अंत में ओंठ दबाये
देखो ये क्या समझाते हैं...
बुरा न कहना, कभी किसी से,
चाहे बुरा सोच लो इनका,
लेकिन बुरा न कहना इनसे
कैसी भी शैतानी दें यदि शिष्य तुम्हारे
उन्हें न डॉटों या फटकारो,
पुस्तक या कि कोर्स की बातें...
या अध्ययन में रत होने की,
पिटि पिटाई नीरस बातें
ऐसा कोई उपदेश न झाड़ो!
सदा प्रशंसा करो शिष्य की
बुरा न मुँह से कभी निकालो।
तीनों बातें समझो इनकी
सुना गुरुजी:
बुरा ना कहो
बुना ना सुनो
बुना ना देखो।