महाजन का मैना को बचाना / प्रेम प्रगास / धरनीदास
चौपाई:-
वडो महाजन वोहित माँहा। मैना देखि महोदधि माँहा।।
कर गहि मैना लीन्ह उठाई। वस्त्र ओंढाय पंखि सुसताई।।
जीव-दया सन्तत जिय कीजै। गाढे सुख सबहीं कँह दीजै।।
पुनि वहि पँखिहिँ दीन अहारा। तबहिँ साहु मुख वचन उचारा।।
जो यहि पँखिहिँ राम जियाई। पार किनारे देब उड़ाई।।
विश्राम:-
पँखी मुखहिँ न बोल कछु, सुने गुने सब बात।
कुँअरकाज नित चित्तमें, सुमिरि सुमिरि पछितात।।29।।
चौपाई:-
जानेउ साहु पँखि जब जियऊ। अधिक जतन पँखीकर कियऊ।।
अन्न पान तेहि लाय पियावहिँ। वार वार कर ले बहलावहिँ।।
मास पाँच पर लाग्यो तीरा। हरषे साहु महाजन वीरा।।
सब मिलि उवरि कियो असनाना। ब्राह्मण कैह दीन्हे वह दाना।।
ले पँखि पुनि दीन उड़ाई। जैह मन होय रहो तँह जाई।।
विश्राम:-
सौदा कतक जाहज को, सबहिँ उतारयो साहु।
लागु करन व्यवपार तँह, जानि नगर नृप पांह।।30।।