महातम - २ / लोकगीता / लक्ष्मण सिंह चौहान
बम बम शिव शिव हर हर बोलु रामा।
डम डम डमरू बजाऊ हो सांवलिया॥
हिम से ढ़कल चोटी चम चम चमकैय रामा।
वाही पर शिव के महल हो सांवलिया॥
घिरी घिरी आवैय रामा कारी कारी बदरी हो।
रिम झिम जल बर साबैय हो सांवलिया॥
झर झर झरैय रामा झरना के पनिया हो।
ऊबुकि डुबुकि शिव नहाबैय हो सांवलिया॥
कुहू कुहू बोलैय रामा बन के कोइलिया हो।
पंखिया पसारि नाचैय मोर हो सांवलिया॥
फल से भरल डार झूकि झूकि डोलैय रामा।
फुदुकि फुदुकि चिड़िया उरैय हो सांवलिया॥
चंगुरा से दावैय मैना कसि के पकरैय रामा।
मीठ मीठ टेबी लोल मारैय हो सांवलिया॥
टॉय टॉय बोलैय काग शिव शिव जपैय रामा।
शिव ते मगन हरि नाम हो सांवलिया॥
झरना से लौटैय शिव बाघम्बर पिन्हैय रामा।
खट खट जपैय रूद्र माल हो सांवलिया॥
गोर कामदेव सन कोमल सुन्दर तन।
पुलकित छीलैय मने मन हो सांवलिया॥
जटबो सोंटल रामा नाग फेन काढ़त हो।
हलाहल धारी नीलकंठ हो सांवलिया॥
मिनती करै छैय पारवती कर जोरी रामा।
अरज सुनहु जटाधारी हो सांवलिया॥