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महादेव जी का ब्याह / नज़ीर अकबराबादी

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पहले नाम गनेश का, लीजै सीस नवाय।
जासे कारज सिद्ध हों सदा महूरत लाय॥
बोल बचन आनन्द के, प्रेम पीत और चाह।
सुन लो यारो, ध्यान धर महादेव का व्याह॥

जोगी जंगम से सुना, वह भी किया बयान।
और कथा में जो सुना, उसका भी परमान॥
सुनने वाले भी रहें, हंसी ख़ुशी दिनरैन।
और पढ़ें जो याद कर, उनको भी सुख चैन॥

और जिसने इस व्याह की, महिमा कही बनाय।
उसके भी हर हाल में शिव जी रहें सहाय॥
ख़ुशी रहे दिन रात वह, कभी न हो दिलगीर।
महिमा उसकी भी रहे, जिसका नाम ‘नज़ीर’॥

यूं कहते हैं इस दुनिया में, एक राजापती हिमाचल था।
वह धर्मी अदली नेक जोति मुख चन्द दिलावर भुल बल था॥
गढ़ कोट बड़े गिरि पर्वत से और फ़ौज सिपह का दंगल था।
गज हस्ती ऊंचे झूलज़री, अम्बारी होदे कुंजल था॥
रथ, बहले मियान<ref>एक प्रकार की छोटी पालकी</ref>, लालरथें, चंडोल पुरअतलस<ref>रेशमी कपड़ा</ref> मखमल था।

ख़ुश रंग, तुरंगें, तेज कदम पर ज़ीन झमकता हर पल था॥
सब साज़ जड़ाऊ गज गाहन, कोई चंचल था कोई कोतल था।
हर बस्तर चीर झलाझल का, धन दौलत पल्लू आंचल था॥
पुखराज ज़ुमुर्रुद लाल मनों मनिमुक्ता भी वे अटकल था।
महलात<ref>महल,बहु.</ref> सुनहरे रंग भरे, दरबारी और सुख मंडल था॥
कुल बर्तन सोने रूपे के और चेरा चेरी का दल था।
बाग़ात बड़ी तैयारी के, हर डाली पर गुल और फल था॥
ज़र ज़ेवर ठाठ असबाब<ref>सामान</ref> बहुत, और ऐश ख़ुशी का भर दल था।
घर जगमग जगमग करता था, सुख चैन आनन्द और मंगल था॥

हर आन तरब हर दम चुहलें, जी जान हर एक औक़ात<ref>समय</ref> खु़शी।
वह राजा भी हर वक्त ख़ुशी और परजा भी दिन रात खु़शी॥
अब यां से आगे सुनो, ख़ूबी से रख ध्यान।
पार्वती के वस्फ़ का, जितना हुआ बखान॥

इस राजा हिमाचल के घर में एक बाली सुन्दर बेटी थी।
मुख उसका चन्द्रगगन का था, नाम उसका गौरा पारबती॥
लब वाले यमन और गुचां दहन, तन बर्गे समन क़द सर्व सही।
पोशाक झलकती ताश ज़री, अनगिनती पहने मनि मोती॥
वह कठले कंगन कुंदन के बह बाजू़ छल्ले और मुंदरी।
वह झांझन बजती चांदी की और जोड़े घुंघरू चौरासी॥
मां बाप की प्यारी नाज़ भरी, आंखों आगे निस दिन फिरती।
नित रहती हाथों छांओं में और मानी आस मुरादों की॥
सुख भोजन नौरस और मेवे, पकवान मिठाई दूध दही।
सौ साठ सहेली साथ फिरें, हम उम्रें भी बाली भोली॥
सब प्यार करें तन मन बारें, संग खेलें, जिसमें बहले जी।
सब गहने में सर पांव लदी, तन सोहे सालू और चुनरी॥
कोई उछले कूदे स्वांग करें, कोई हंस हंस करती अठखेली।
दिन रात हंसे और चैन करें, हर आन की ख़ूबी ख़ुश वक्ती॥

थी रहती गोरा पारबती, इन रूप सरूपों अबरन में।
सब तौर ख़ुशी से फिरती थी, नित अपने घर और आंगन में॥
अब यां से आगे सुनो उसकी यह तक़रीर।
जैसे गोरा की हुई निस्बत<ref>रिश्ता, सम्बन्ध</ref>, की तदबीर॥

एक रात वह राजा रानी थे सुख बैठे अपने मंडल से।
मुख पान बिराजें दोनों के और हंस हंस बाते करते थे॥
वह बाली सुन्दर पारबती, ख़ुश बैठी आगे दोनों के।
हर चेरी बांधे हाथ खड़ी, पोशाकें पहने और गहने॥
मुख देख दुलारी कन्या का, यूं बोले राजा रानी से।
अब अपनी गोरा प्यारी की, कुछ फिक्र सगाई की करिये॥
तब बोली रानी राजा से, कर जोड़ बहुत बिनती करके।
जो आपके मन में सोच हुआ है सोच वो ही मन में मेरे॥
तुम साहब हो तुम मालिक हो, है सोभा सबकी अब तुमसे।
दो हुक्म पुरोहित को अपने, रख ध्यान सगाई का उसके॥
जो राजपती घर ऊंचा हो, हर शहर नगर में जा ढंूढे।
वह बर भी ऐसा सुन्दर हो, जो मेरी गोरा को सोहे॥
है जैसी गोरा चन्द्रमुखी, वैसा ही बर उसका होवे।
यह बात जो ठहरी दोनों में, रख मन में इसको सोय रहे॥

जब सुबह हुई तो राजा के मन में था वो ही ध्यान भरा।
दरबार में आये ख़ुश होते, सिंहासन ऊपर पांव धरा॥
अब यां के आगे सुनो और बचन इस आन।
निस्बत गौरा की हुई जग में जिस उनवान<ref>जिस प्रकार</ref>।

जब राजा अपने महलों से, सिंहासन पर बैठे आकर।
दरबार हुआ गुल लाला सा, सब हाज़िर नौकर और चाकर॥
यह बात कही जब राजा ने, ले आओ पुरोहित को जाकर।
उस वक़्त पुरोहित आ पहुंचे आशीर्वचन रसना लाकर॥
सर पाग बड़ाई की सोहे और चंदन रोली माथे पर।
तनजामा<ref>शरीर के वस्त्र</ref> ख़ासा मल मल का, इकलाई रंगी पीतम्बर॥

मुख पान गले मोती माला और मूंगा सोना भी अक्सर।
ख़्ुाश सूरत सीरत नेक बचन, क़ाबिल<ref>योग्य</ref> आक़िल दानिशवर<ref>बुद्धिमान</ref>॥
मुख देख पुरोहित का अपने यूं राजा बोले खुश होकर।
तुम जाओ सगाई गोरा की, अब ढूंढ़ो अच्छी साअत पर॥
है जितने शहर फिरो उनमें और सैर करो मुल्क और नगर।
जिस देश में देखो राजपती हो ऊंचा घर और बर सुन्दर॥
ठहराओ सगाई गोरा की, शुभ साअत से तुम उसके घर।
जब ठहर चुके वां ख़ूबी से दो उसकी हमको आन ख़बर॥

जिस वक़्त पुरोहित से अपने, यह राजा ने फ़रमान<ref>आदेश</ref> किया।
ख़ुश हाल पुरोहित ने होकर, वां ढूंढने का सामान किया॥
अब यां से आगे सुनो, बात पुरोहित मान।
चले सगाई ढूंढने, गोरा की, रख ध्यान॥

हो शाद<ref>प्रसन्न</ref> पुरोहित चलने को, इस शहर से जब तैयार हुए।
यूं जल्द चले उस नगरी से, जूं पवन सहर<ref>सुबह</ref> के वक़्त चले।
हर दीप गए, हर नगर गए, हर शहर बसे, हर देश फिरे।
पर एक न पाया ऐसा बर, जो राजा के परसंद पड़े॥
मक़दूर<ref>सामर्थ्य</ref> तलक तो देख फिरे, और अपने बस तक ढूंढ चुके।
तदबीर बहुत सी की लेकिन, जो चाहे सो तक़दीर करे॥
जो बात लिखी हो कर्मों में, हर तौर वही आकर होवे।
जो चाहे फेरे कोई उसे क्या ताब जो तिल भर फेर सके॥
अब खेंची बाग नसीबों ने, फिर उसके आगे हार गए।
वां फिरते फिरते आख़िर को, कैलास के ऊपर जा पहुंचे॥
क्या देखें वां कैलास ऊपर, शिव आप अकेले बैठे हैं।
की स्तुति और ख़ुश वक़्त हुए, सुख पाये उनके दर्शन से॥
जब मन को सुख आनन्द हुई, फिर थोड़ी सी वां केसर ले।
कर टीका उसका जल्द बहुत ख़ुश होकर माथे पर शिव के।

जिस आन पुरोहित खींच चुके, वह केसर टीका शादी का।
फिर वां से अपने देश फिरे, कर काज मुबारकबादी<ref>शुभ कामना</ref> का॥
अब यां से आगे सुनो, इसका किया बयान।
बात पुरोहित ने कही, राजा से जब आन॥

दिन कितने में वां राजा सक इस टीके की आ बात कही।
सुन नाम सदा शिव शंकर का, हुई राजा के घर बहुत ख़ुशी॥
सब ख़वैश<ref>भाई बन्धु</ref> कुटुम दिल शाद हुए, और परजा को हुई ख़ुश वक्ती।
घर बार मंदीले ढोल बजा, आनन्द ख़ुशी की धूम मची॥
कोई बोली हर दम ख़ुश होकर, हो आई सगाई गोरा की।
कोई गोद चढ़ाकर कहती थी, आ मेरी गोरा पार्वती॥
कोई आंखें चूमे प्यार करे, कोई दौड़ बलायें लेती थी।
जब घर में मशहूर हुई, यह बात ख़ुशी आनन्द भरी॥
तब राजा ने हर पंडित से, वां लगन महूरत की पूछी।
सब बोले माह महीने की, सुभ साअत है और नेक घड़ी॥
दिन ठहरा ब्याहने आने का, सुभ साअत शादी लगन धरी।
तब राजा ने शिव शंकर को, इस बात की पत्री लिख भेजी॥
वह पत्री शिव के पास गई ले हाथ उन्होंने सब बांची।
हो नादिया पर असवार चले और आये नगरी राजा की॥

वा आन के उतरे ब्याहने को, था उस जा एक मेदान बड़ा।
ख़ुश वक्त नवेले चाव भरे, कर जोगी का सामान बड़ा॥
अब यां से आगे सुनो, यह बरनन इस आन।
जब वां से शिव ने किया जोगी का सामान॥

वां जाने बूझे कोन उन्हें, थे यह तो उतरे जोगी बन।
त्रिसूल चक्र था कांधे पर और राख भरा मुख और तन॥
एक मैली गुदड़ी पीठ पड़ी और आक धतुरे का भोजन।
वह संख पद्म था माल मता वह घंटा खप्पर झोली धन॥
जलपान करें वां शिव जिसमें वह तूंबा तुंबी का बर्तन।
और सीस लटाएंे बिखर रहीं, मृग छाला का डाले आसन॥
मुख राख भरा और लाल आंखे कन मुंदरे कर में एक सुमरन।
इस जोगी पन में शिव जी का, था दूल्हा का यही ज़ोर बरन॥
वह राख मली जो मुख तन पर, वह राख न थी वह था उबटन।
और लाल सुहाना बागा था वह गेरुआ रंगा पैराहन<ref>कुर्ता</ref>॥
वह सुमरन थी यूं पहुंचे पर, जूं बांधे दूल्हा हाथ कंगन।
वह सीस लटाएंे यूं बिखरीं, जूं बांधे सेहरा नेक लछन॥
वह मुंदरे कानों बीच पड़े यूं जैसे मोती हों कानन।
वह लड़ियां सेली की ऐसी जूं जेवर होवे ज़ेब बदन॥

कुछ ठाठ न बाजा गाजा था, और कोई संग न साथी था।
वह आप सदा शिव दूल्हा थे और नादिया बेल बराती था॥
अब यां से आगे सुनो उस जोगी की बात।
लोगों ने जिस दम सुनी, मले हर एक ने हाथ॥

वां लोग बरात आने के थे, दिन रात सभी मुश्ताक<ref>इच्छुक</ref> बड़े।
मालूम न था यह दूल्हा है, थे राह ख़ुशी की सब तकते॥
हर चार तरफ़ ख़ुश वक़्ती से, कुछ बैठे थे कुछ फिरते थे।
वां सबने जोगी जान उन्हें हर देस नगर फिरते रहते॥
यूं उनसे पूछा जोगी जी कोई देखी राह बरात आते।
उस वक़्त सदा शिव हंस बोले, है व्याहने हम ही तो आये॥
यह बात सुनी जब लोगों ने, तब सुनकर सबके होश गये।
दिल सुस्त हुए और मन खट्ठे फिर जाकर आगे राजा के॥
यह बात की उस जोगी की, तब राजा भी हैरान हुए।
तहक़ीक़<ref>दरियाफ्त</ref> किया तो ठीक वही तकदीर से रोये हाथ मले॥
सब महलों मन्दिर शोर मचे, यह भाग थे कैसे गौरा के।
कोई माथा कूटे सीस धुने, कोई आंसू हर दम भर लाये॥
कोई देखके सूरत गौरा की, रो देवे ठंडी सांस भरे।
कोई बोले कर्म लिखय्या ने, जो कर्म लिखी हो सो होवे॥

वां जिन ने यह बात सुनी, अफसोस उसे फिलफ़ौर<ref>उस समय, तुरंत</ref> हुआ।
जो चाहा था कुछ और ही था और परगट यां कुछ और हुआ॥
अब यां के आगे सुनो, ध्यान इधर को लाय।
आज़र्दा जैसी हुई, पार्वती की माय॥
रो झींक इधर मां गौरा की, सुन जोगी पर यूं उठ बोली।
यह केसी विपता आन बनी, मुश्किल ने सूरत खोली॥
वह मेरी गौर पार्वती, बाली वय की सुन्दर भोली।
यह पाली धन और दौलत की, यह फूल तराजू की तोली॥
मुख जिसका चमके चांदनी में और मिसरी होटों में घोली।
वह अलकें मुख पर छूट रहीं, कस्तूरी ने जिस से बोली॥
हर कंगन जिसका बेशबहा<ref>मूल्यवान</ref> हर पहुंची जिसकी अनमोली।
सो पल्ले बांधी ऐसे के, जो पहने कथा और झोली॥
तन राख मले गुदड़ी ओढ़े, खा आक धतूरे की गोली।
सर केस बिखेरे, लाल नयन, जूं लाल महावर की गोली॥
ने महल मकां ने ज़र जेवर, ने बहल मियाना रथ डोली।
चढ़ बैल बजाता संख फिरे, वन पर्वत खाता झकझोली॥
अब लाज गई कुल में मोरी, सब दुश्मन बोलें कल बोली।
तदवीर नहीं कुछ बन आती, तक़्दीर जो होनी थी होली॥

थी मेरी गोरी प्यारी की, यह बात छटी की रात लिखी।
कुछ और न हो हो अंत वही, जो माथे में हो बात लिखी॥
अब यां से आगे सुनो, शिव ने जब उस आन।
अपनी माया से किये, क्या-क्या वां सामान॥

तब राजा ने भी रिस खाकर, दरबार पुरोहित बुलवाये।
जब आये तो यह बात कही, यह कैसा टीका कर आये॥
सब लोगों ने भी नाम धरे, तब चुप हो शिव के पास आये।
लजियाना देख पुरोहित को, वां ठाठ यह शिव ने दिखलाये॥
जो बाद ने झाड़े ख़ारो ख़स<ref>काँटे-कूड़ा</ref>, और बादल तम्बू तनवाये॥
नमगीरे झालर मोती के, कमख़्वाब मुशज्जर झलकाये।
कुल फ़र्श हरीर और दीबा के, खुश रंग चमकते बिछवाये॥
मुक़्के़श ज़री के लच्छे भी फिर जागह-जागह लटकाये।
गुल इत्रों गुलाब और पान धरे कस्तूरी अम्बर रखवाये॥
भर थाल इलायची लौंगों के, फिर ख़ूब तरह से चुनवाये।
चंगेर घरी सौ ज़ेब भरी और तुर्रा हार भी गुंधवाये॥
हर चार तरफ़ तैयारी के, असबाब<ref>सामान</ref> तरब<ref>प्रसन्नता</ref> के ठहराये।
जो ठाठ बड़े हैं शादी के, एक पल भर में सब झमकाये॥

आकाश के देवता जितने हैं, बन ख़ूब बराती आन भरे।
वह पहला भी मैदान भरा, और वैसे सौ मैदान भरे॥
अब यां के आगे सुनो, ख़ुश होकर हर आन।
जैसे शिव दूल्हा बने, उसका किया बयान॥

जब बैठे शिव की शादी में, कुल तैतीस कोटि जो हैं देवता।
विष्णु आप थे आये और ब्रह्मा और इन्द्र नारद मुनि उस जा॥
और शुक्र और वृहस्पत भी और नाम शनीचर है जिनका।
वह रूप स्वरूप और पौशाकें, वह ऊंची शानें ज़ेब फ़िजा॥
उस वक़्त ख़ुशी से मसनद पर शिव बैठे बनकर यूं दूल्हा॥
मुख पान की लाली, कर मेंहदी, और आंखों बीच लगा कजरा॥
हर तार चमकता चीरे का और ताश सुनहरी का बागा।
उस तार जरी के चीरे पर जूं माह चमकता मुकुट धरा॥
हर कान मुरस्सा<ref>सुसज्जित</ref> कुन्दन थे और मुख पर सोने का सेहरा।
वह सेहरा मुख पर यूं चमके, जूं सूरज होवे किरन भरा॥
वह मोती माल गले झलकें और उनमें लालों की माला।
वह बांक जड़ाऊ बाज़ू पर और कंगना पहंुचे झमक रहा॥
जब बैठे शिव यूं दूल्हा बन, सब परियों का वां नाच हुआ।
और क़रना सरना झांझ बजे, नक़्कारे गूंजे शोर मचा॥

यह ठाठ बनाकर दिखलाया जब शिव ने माया अपनी की।
हर चार तरफ़ आनन्द हुए गुल शोर हुआ ख़ुश वक़्ती का॥
अब यां से आगे सुनो, इस शादी के तौर।
देख इसे जी से खुशी, लोग हुए हर ठौर॥

यह धूम मची वां आपस में, क्यूँ लोगों कैसा यह जोगी।
हम समझे इसको जोगी थे और निकलना यह तो राजपती॥
नर नारी निकले छोड़ मन्दिर रख मन में चाव तमाशे की।
और बुढ़िया बूढे़ तिफ़्ल् जवां और कुबड़े लंगड़े बहरे भी॥
सब देखने को वां आन भरे सो ठठ हुए और भीड़ लगी।
यह बात सुनी जब राजा ने, तब चढ़ कर कोठे पर जल्दी॥
जब देखा तो वां कोसों तक ज़ोर बरात आकर उतरी।
खु़श वक़्त हुए, खु़श हाल हुए बर आई सब मनता मन की॥
हुई महलों मन्दिर बीच खु़शी, और ऐशो तरब की धूम मची।
दिल शाद हुए सब कुनबे के, मां गोरा की भी शाद हुई॥
मुंह देख के खु़श हो बेटी का और माथा चूमे घड़ी घड़ी।
कोई पार्वती के पांव छुए कोई होवे हर दम बलिहारी॥
कोई धन धन भाग कहे रह रह, कोई वारी हो सौ सौ बारी।
अब चाव यही और चाह यही जो देखें सूरत दूल्हा की॥

थे कैसे जोगी देख उन्हें, वाँ गम़म से दिल पामाल<ref>पददलित</ref> हुए।
जब ठाठ यह देखे शादी के, सब शाद हुए खु़श हाल हुए॥
अब यां के आगे सुनो भोजन के सामान।
जिसकी है तारीफ़ से मीठा हुआ बयान॥

जब राजा ने यह हुक़्म दिया तैयारी हो अब भोजन की।
मंगवाया मैदा लाखों मन और मेवे मिसरी शक्कर घी॥
हलवाई हज़ारों आ बैठे कर गरम कढ़ाव रख थाल नई।
कर खोये सुथरे दूध मंगा और डाली चीनी शकर तरी॥
फिर डाला खू़ब गुलाब उसमें और डाली डलियां मिसरी की।
अम्बार लगाये पेड़ों के और ढेर गुलाबी और बर्फ़ी॥
फिर लड्डू भी तैयार किये, दे क़ंद बहुत बादाम गरी।
बुर्राक़ मगद और खु़र्मे भी खु़श रंग इमरती वेर बली॥
वह खू़ब जलेबी और खजले वह घेवर बालूसाई भी।
सब इतने वां तैयार हुए जो ठौर न रखने की पाई॥
की अर्ज यह जाकर राजा से, सब जिन्स वह अब तैयार हुई।
टुक देखो तुम भी आन उसे, जो है कितनी और है कैसी॥
जो हुक़्म हुआ था इतनी तो सौ खू़बी से बनवा डाली।
जब राजा ने भी आंख उठा, हर जिन्स बहुत सुथरी देखी॥

मग़रूर<ref>गर्वित</ref> हुए यह कह मन में जिस आन बराती आवेंगे।
सब अपने मन भर खावेंगे, और ढेर पड़े रह जावेंगे॥
अब यां से आगे सुनो, ऐश खु़शी की बात।
जैसे जैसे ठाठ से, शिव की चढ़ी बरात॥

जब रात हुई तब शिव शंकर खु़श वक़्ती से असवार हुए।
सब आगे पीछे दूल्हा के, दिलशाद<ref>ख़ुश</ref> बराती साथ चले॥
फ़ानूसें<ref>कंडीलें</ref> रंगी झिलमलियां, और झाड़ बड़ी गुल कारी के।
हर आन जड़ाऊ चौर ढलें और सीस के ऊपर छत्र फिरे॥
वह परियां नाचें त़तों पर, पोशाकें गहने झमक रहे।
नक़्क़ारे नौबत तलब निशां, अलग़ोजे़ बजते और डफ़ले॥
हर सुरना में धुन में में की, और करना तुरई झांझ बड़े।
कर धोंसे धुं धू बाज रहे, और ताशे बजते कड़-कड़ से॥
मृदंग मंदीले ताल बजें, और सारे घुंघरू भी झनके।
वह ढोल धमाधम शोर करें और झपने भी झम झम करते॥
वह हाथी कुंजल और मकने अम्बारी होदे और बंगले।
वह झूमते चलते क़दम क़दम, और बजते जाते घंटा ले।
वह झाड़ मशालें, पंशाखें सब रौशन ऊंचे शोलों के॥
वह सहरा झमका कोसों तक और अब्र उजाली जा पहुंचे॥

सह घोड़े मियाने घोड़ बहले, रथ ऊंचे पहिये ढलते थे।
सब बाजे बजते जाते थे, ओर हौले हौले चलते थे॥
अब यां से आगे सुनो, चले जो भोलानाथ।
और बराती भी हुए, ऐसे उनके साथ॥

फिर और हज़ारों साथ चले जो भूत प्रेत और राक्षस थे।
डील ऊंचे उनके बुर्ज़ नमन, और सीस भी उनके गुम्मट से॥
हर पग्गड़ उनका सौ मन का और मोटे रस्सों के पटके।
और पगड़ों पर तुर्रो की तरह थे साखू बरके बर रखे।
कोई नंगे सर वह बाल इसके, ज्यों बांस बड़े दस दस गज़ के।
कोई मंुड कोई रुंड और कोई बिन पांवों नाचे और कूदे॥
कोई हाथी रखे कांधे पर, कोई ऊंट बग़ल में दुबकाए।
कोई अरना भैंसा गोद लिये, कोई गैंडा सर पर बिठलाए॥
कोई सांप गले में लिपटाए फन उनके दम पर दम चूमे।
कुछ लम्बे सोटे लोहे के, कुछ हाथ लिये भारी लकड़े॥
कोई गावे फाड़ गला अपना, कोई निरत करे चकफरी ले।
कोई शोर करें खु़श हाली से, यूं जैके हाथी चिघाड़े॥
कोई हाथ नचावे रह रह कर, कोई नैन खु़शी से मटकावे।
कोई लम्बे लम्बे डग रक्खे, कोई दस दस गज़ की जस्त करे॥

कुछ रंग अजब कुछ ढंग नये, सब हंस हंस धज दिखलाते थे।
थे धूम मचाते रस्ते में, हर आन उछलते जाते थे।
अब यां से आगे सुनो, शादी के अतवार।
चले सदा शिव जिस तरह, पार्वती के द्वार॥

जब देखा वां के लोगों ने वह कोसों फैला उजियाला।
वह सुरना की आवाज़ सुनी, और नक़्क़ारों का शोर सुना॥
सब बोले बरात अब आती है, यह शोर उजाला है उसका।
तब राजा ने भी भेज दिया, हरकारे पर वां हरकारा॥
वह आते जाते जल्द बहुत, जो देखते बां सो कहते आ।
कोई कहता अब वां आ पहुंचे, कोई कहता आये अब इस जा॥
कोई कहता इतने हाथी हैं, कुछ छोर नहीं जिनका मिलता॥
कोई कहता घोड़े हाथी हैं, अम्बोह रथों का है आता।
यह बातें सुनकर राजा ने घबराके मन के बीच कहा॥
यां लोग बहुत से आते हैं, जनमासे बीच कहाँ यह जा।
यह भीड़ कब उसमें मिल बैठे कुछ बन नहीं आता करिये क्या॥
प्रधान खड़े थे जो आगे, जब उनसे अपना भेद कहा।
यह ठाठ जो अब याँ आता है कुछ तुमने इसका फ़िक्र किया॥

वह बोले क्या तदबीर करें, और क्या क्या इसका ध्यान करे।
आ जावे इतना ठाठ जहाँ, वां किस-किस का सामान करें।
अब यां से आगे सुनो, बातें हैं यह ठीक।
आये शिव जिस तरह वां द्वारे के नज़दीक॥

जिस आन बरात आई दर पर, यह खू़बी ठहरी जे़ब भरी।
वह परियां नाचीं तख़्तों पर, झनकारें मार मज़ीरों की॥
वह डंके लगत धौंसे पर, धुन करना सरना की ऊंची।
दरवाजे़ कोठे गूंज रहे, आवाज़ सुहानी उनकी थी॥
वह तबल बजें और डफ़ले भी नक़्क़ारे ताशे और तुरई।
वह दहल झलनी के बाज रहे, और घर घर में आवाज़ गई॥
कुल जेब<ref>शोभित</ref> बराती चार तरफ़ और बीच सबारी दूल्हा की।
सब छज्जे छज्जे कोठों पर, वां देखें ज़ीनत और खू़बी॥
सब वाह करें और चाह करें और ठाठ को देखें घड़ी घड़ी।
हों देख के सूरत दूल्हा की वां सौ सौ दिल से बलिहारी॥
वह आती थी जो साथ लदी और आतिशबाजी भी छुटती।
मेहताब अनार और फुलझड़ियां हथफूल हवाई खू़ब कड़ी॥
एक पहर तलक दरवाजे़ पर वां फूल रही फुलवारी सी।
सब हाथी घोड़े बैल उछले, गुल शोर हुआ और धूम मची॥

सब शाद हुए ख़ुश वक़्त हुए यह देख तमाशे खू़बी के।
कर वस्फ़ बहुत बलिहार हुए उस दूल्हा की महबूबी के॥
अब यां से आगे सुनो, शादी के रसम और।
जिसकी हर एक रस्म से, जो ख़ुश हो फिलफ़ौर<ref>तुरन्त</ref>॥

जब राजा के दरवाजे़ पर हुई आन बरात इस तौर खड़ी।
सब बाजे बाजे देर तलक और छूटी आतिशबाज़ी भी॥
जब समधी आये मिलने को और समध मिलावे की ठहरी।
उस वक़्त बुलाया दूल्हा को, तो होवे जे़ब मन्दिर की भी॥
जब दूल्हा ड्योढ़ी बीच गए, तब निकली सुन्दर सौ चेरी।
ले आई मन्दिर में दूल्हा को, ख़ुश होती और अरघ देती॥
वह चांद सा मुख वह सर सहरा, वह पहुंचे कंगना तार ज़री।
वह रूप सुहाना जब देखा, हुई सबके मन के बीच खु़शी॥
कोई बोला दूल्हा खू़ब मिला, इस दूल्हा के मैं बलिहारी।
कोई बोली मैं इस दूल्हा पर अब वारूँ मन मन भर मोती॥
कोई देखके होती शाद बहुत, कोई वार के पानी पीती थी।
छन कह कर उस जा दूल्हा ने, ली नेग अशर्फ़ी बहुतेरी॥
इस तौर कहे छन खू़बी से, जो हर एक मुंह को देख रही।
सब महलों मन्दिर बीच हुई, आनन्द खु़शी और खु़श वक़्ती॥

जब बैठे दूल्हा मन्दिर में, मन बीच ख़ुशी की बात लिए।
जनमासे बीच बरात उतरी, वह ठाठ ख़ुशी का साथ लिए॥
अब यां से आगे सुनो, इस सूरत की बात।
जनमासे में जिस तरह, बैठी आन बरात॥
कुछ जनमासे के बीच गए, कुछ बैठे जा दालानों में।
कुछ आंगन में कुछ बैठक में, कुछ बैठे बालख़ानों में<ref>व्यस्त</ref>॥
कुछ आन बिराजे ड्यौढ़ी में, मशगूल<ref>व्यस्त</ref> खु़शी की बातों में।
कुछ बाहर आकर बैठ रहे, कुछ बैठे रथ और मियानों में॥
हर ठौर बजे करना सरना, और तुरई तबल भी महलों में।
हर जानिब धोंधों बाज रहे, नक़्क़ारे रस्ते कूचों में॥
और बाजे नौबत झांझ पड़ी और शादी की रंग रलियों में।
कुछ बात न समझे कान धरी उन बाज़ों में उन धोंसों में।
कुछ मियाने रथ और घोड़बहल ला आन खड़ी की राहों में।
कुछ घोड़े उछलें बैल लड़ें, कुछ हाथी झूमें गलियों में॥
थे जितने वां बाज़ार बने कुछ उतरे उन बाज़ारों में।
और जितने वां थे बाग़ लगे, कुछ उतरे जा उन बाग़ों में॥
जब ठौर न पाई बस्ती में, कुछ उतरे शहर सवादों में।
वां डेरे तम्बू तान लिये और बैठे ख़ुश उन डेरों में॥

वह थे वां जिस जिस तौर उपर कुल फ़रहत<ref>प्रसन्नता, आनन्द</ref> के आहंग हुए।
गुल शोर हुए और नाच हुए और राग हुए और रंग हुए॥
अब यां से आगे सुनो, इसका भी बिस्तार।
जिस जिस तौर से आन कर ठहरी वां ज्यौनार॥

जिस वक़्त बराती बैठ चुके तब राजा ने वां लोगों को।
यह हुक़्म किया अब खू़बी, से उन सबको जाकर भोजन दो॥
सब चाकर चौकर जल्द चले और जनमासे में आकर वो।
यूं बोले अब सब कृपा कर ज्योंनार मन्दिर के बीच चलो॥
अब तुम भी जैमो और उनको दिलवाओ जिन्हें दिलवानी हो।
हैं मुकते ढेर मिठाई के, दरकार हों जितने उतने लो॥
इस बात को सुनकर हंस बोले, है ख़ूब पर इतनी बात सुनो।
यह दो बालक जो बैठे हैं, तुम पहले उनको जिमवादो॥
वह गोद उठाकर ख़ुश होते ज्योंनार में लाये दोनों को।
थे जितने वां अम्बार लगे, और ढेर मिठाई के थे जो॥
एक डेढ़ निवाला कर बैठे फिर मचले अब कुछ और रखो।
उन लोगों के तब होश गए और भागे वां से लरज़ां<ref>कंपित</ref> हो॥
यह बात कही जब राजा से, तब वह भी अपनी सुध बुध खो।
हैरान हुए और चुप रह गए, मन बीच बहुत शर्मिन्दा हो॥

मग़रूर<ref>गर्वित, घमण्डी</ref> हुए थे कह कर यूं जा भोजन के अंबार करें।
सो उसकी तो यह शक्ल हुई अब काहे को ज्योनार करें॥
अब यां से आगे सुनो, खु़श होकर यह शान।
जैसे दूल्हा के हुए फेरों के सामान॥

जब साअत आई फेरें की, तब ठहरी उस जा यह खू़बी।
घर बीच बुलाया दूल्हा को और फेरों की तैयारी की॥
कुछ बैठे लोग इधर ऊधर सब अपने मन के बीच ख़ुशी।
जो फ़र्श मुक़र्रर<ref>तय</ref> है उस पर आ बैठे दूल्हा दुल्हन भी॥
जब दूल्हा दुल्हन मिल बैठे तब रीत हुई गठजोड़न की।
वह पंडित आये हवन किया, सब लाकर इसकी चीज़ रखी॥
सब पंडित बैठे वेद पढ़ें, कोई बैठा डाले शक्कर घी।
गनेश की पूजा करके वां फिर पूजा की नौ ग्रहों की॥
भर थाल जवाहर नेग मिलें, लें जल्दी सो इसे और नेगी।
और ले ले नेग दुआऐं दें, सब दूल्हा दुल्हन को बेगी॥
सुभ साअत नेक महूरत से, वह दूल्हा दुल्हन रूप भरी।
इस तौर फिरें मिल आपस में है रीत जो होती फेरों की॥
जब फेरे चार हुए आकर कुल ऐशो तरब की धूम मची।
हर चार तरफ चमकी झमकी खु़शहाली ख़ूबी खु़श वक़्ती॥

हर मन में सौ सौ ऐश भरे और फ़रहत से पहचान हुई।
है जग में जो आनन्द ख़ुशी, वह ज़ाहिर सब उस आन हुई॥
अब यां से आगे सुनो, और बचन दो चार।
आये बाहर शाद हो, दूल्हा जिस अतवार॥

वह फेरे भी जिस वक़्त हुए इस खू़बी और ख़ुश वक़्ती से।
जो रस्में और मुअय्यन<ref>निर्धारित</ref> थीं, उनसे भी सब शाद हुए॥
दस रोज़ हुए फिर टहले में और चाव बर आये सब दिल के।
शिव बाहर आये मंडल से, जूं सूरज वक़्त सहर निकले॥
वह चीरा सर पर चमक रहा वह मुकुट जड़ाऊ भी दमके।
तन बागा झलके हर साअत, और लालों की माला चमके॥
कुछ कानों मोती चमक रहे कुछ बांक झमकते बाजू के।
सौ जे़ब झमक से ख़ुश होते आ मसनद पर अपने बैठे॥
वह ख़ूबी सोभा दूल्हा की, सब देखें वां के लोग खड़े।
सब होकर खु़श यह बात कहें, यह दूल्हा ऊपर ठाठ बड़े॥
वह देखें अपनी आंखों से हों जग में भाग बडे जिनके।
वह राजा रानी शाद बहुत, और लोग ख़ुशी सब कुनबे के॥
वह चेरा चेरी भी ख़ुश दिल और नौकर चाकर खु़श फिरते।
उस नगरी के ताले<ref>भाग्य</ref> चमके, उन लोगों के भी बख़्त<ref>भाग्य</ref> खुले॥

जिस तौर हुई वह ख़ुश हाली कब उसकी हालत जाय कही।
हर चार तरफ़ खु़श वक़्ती के सौ शोर हुए और धूम हुई॥
अब यां से आगे सुनो, बात खु़शी आमेज़।
जो जो राजा ने दिया, उस जा दान दहेज॥

जिस आन हुए शिव चलने को, तब लाकर यह असबाब धरे।
पोशाकें रंगीं जे़ब भरीं, हर तार पड़ा जिनका झमके॥
ज़र जे़वर के वां ढेर लगे, जो बाहर होवे गिनती से।
वह मोती हीरे अनमोले, वह लाल जुमुर्रद के डिब्बे।
वह कलस बट्टे चांदी के वह थाल कटोरे सोने के।
वह फ़र्श सुनहरे नक़्श भरे जो बिछते महलों बीच बड़े॥
वह चीरे ख़ूब लिबासों के और गिनती में भी बहुतेरे।
वह चेरियां अच्छी सूरत की, सर पांव तलक जे़वर पहने॥
वह कुंजर झूल झलकनी के अम्बारी जिन पर और होदे।
वह घोड़े गुलगूं मिस्ल हवा ज़रदोज़ी<ref>सुनहरी कढ़े हुए</ref> जिन पर जीन बंधे।
चंडोल झलकते वह जिन पर, बानात ज़री के थे पर्दे।
हथ बहले और घोड़ बहलें, सब ठाठ चमकते जिनके थे॥
वह रंगी झालरदार रथें, वह बैल बहुत जिनके ऊंचे।
यह ठाठ रखा दरवाजे़ पर और बुगदी बोझ उठाने के॥

थे जितने शादी ब्याह निमत, सामान जो वां तैयार हुए।
हर ठाठ के वां दरवाजे़ पर, हर जानिब सौ अम्बार हुए॥
अब यां से आगे सुनो, राजा ने उस आन।
जो बातें शिव से कहीं, उनका किया बयान॥

यह ठाठ किये धन दौलत के, तब राजा शिव से यू बोले।
कुछ बन नहीं आया जो हमसे मन बीच हुए हम शर्मिन्दे॥
किस लायक हैं जो देते हम असबाब तुम्हारे लायक़ के।
तुम अच्छे जग में ऐसे हो, जो पालते हो लाखों हमसे॥
हैं भाग हमारे बहुत बड़े, जो चरन तुम्हारे हम देखे।
इस नगरी में इस मण्डल में, तुम आये अपनी कृपा से॥
तुम थाम न लेते जो हमको, फिर कहिये क्यूं कर हम थमते।
जो कृपा तुमने हम पर की कब स्तुति इसकी हो हमसे॥
हम चीज़ नहीं कुछ गिनती की और तुम हो लाखों ख़ूबी के।
इस आन दया जो आपने की, वह देखी काहे को हमने॥
हर वक़्त हमारी बांह रहो, कर कृपा से अपनी गहते।
मन बीच हुए हम बहुत ख़ुशी और भाग हमारे जाग उठे॥
तुम लाज हमारी रखने को, हर आन रहो कृपा करते।
जो मन में थी सो बात कही अब और कहें क्या हम आगे॥

जब राजा ने यह बात कही, और हर दम अधिक अधीनी की।
तब शिव ने हंसकर राजा के, वां मन की बहुत तसल्ली की॥
अब यां से आगे सुनो, मन इधर को लाय।
पार्वती वां जिस तरह घर से हुई बिदाय॥

जब शिव ने वां यह हुक्म किया, तैयारी हो अब चलने की।
और आप मन्दिर के बीच गए, तो होवे बिदा वां दुलहन की॥
यह बात बिदा की सुनते ही, वां गोरा की मां यूं बोली।
सब तौर तुम इसके मालिक हो, यह चेरी मैंने तुमको दी॥
मन इसका रखियो बहुत खु़शी, मत मैला कीजो इसका जी।
यह प्यारी है मन की मेरी और रौशनी मेरी आंखों की॥
यूं कहकर बोली गोरा से, मिल मुझसे मेरी पार्वती।
जब गोरा प्यारी दौड़ गले, वां अपनी मां के आ लिपटी॥
वह मां भी रोई देख उसे और रोई जितनी थीं घर की।
मां देख के रोती गोरा को, कर प्यार उसे यूं कहती थी॥
तू आंखें रो रो लाल न कर, मैं तेरे मुख के बलिहारी।
कुछ अपने मन के बीच न ला, मैं तुझको बुलाऊंगी॥
फिर आखि़र वां इस रोती को, कर प्यार बहुत सा घड़ी घड़ी।
चंडोल मंगाकर ड्योढ़ी पर वां सबने रोती बिठलाई॥

सच पूछो तो मां बाप तई, है बेटी से यां प्यार बहुत।
जिस वक़्त वह ब्याही जाती है, तब होते हैं लाचार बहुत॥
अब यां से आगे सुनो इतनी यह भी बात।
जैसे वां उस देस से, शिव की चली बारात॥

जब ड्योढ़ी से चंडोल उठा, दरवाजे पर सो ख़ूबी से।
नौछावर इतनी की उस पर, कुल मोती फूल ज़री बिखरे॥
उस वक़्त बहुत ख़ुश वक़्ती से शिव शंकर भी असवार हुए।
वह ख़ूबी हिश्मत<ref>आतंक, रौब</ref> चार तरफ़, सब साथ बराती जे़ब भरे॥
असवारी दूल्हा की आगे, चंडोल दुल्हन का था पीछे।
वह बाजे लाये साथ जो थे, सब हर दम बजते साथ चले॥
असबाब दिये जो राजा ने, थे उसके जाते ऊंट लदे।
वह जितने चेरा चेरी थे, सब रथ और मियानों में बैठे॥
वह हाथी घोड़े हर जानिब, अम्बारी जीन झमकते थे।
उस देस के रहने वाले भी, सब देखने निकले घर-घर से॥
हर कोठे-कोठे भीड़ लगी, और रस्ते रस्ते लोग भरे।
गुल शोर ख़ुशी के चार तरफ, सब देखें वां वह ठाठ बड़े॥
जिस तौर खु़शी से ब्याहने को, शिव आये घर में राजा के।
फिर वैसी ही खु़श वक़्ती से, कैलाश के ऊपर जा पहुंचे॥
यूं ठाठ हुआ, यूं ब्याह हुआ, बस और न आगे रे बोलो।
दंडौत करो हर आन ‘नज़ीर’, और हर दम शिव की जै बोलो॥

शब्दार्थ
<references/>